कितनी ही राहों को
अकेला
नापता है समय
बच्चे ,बूढ़े सभी को
संभालता है समय
समय जो काल है
काल को हम
अपने क्षय से नाप कर
उसे अपनी वृधि के शब्दों में व्यक्त करते हैं
लेकिन काल
ना तो क्षय है
ना वर्धि
वह था , है और रहेगा
ये तो हमारी समझ का फेर है
सच तो यह है
हम रीत कर ही उसे भरते हैं
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