Saturday, October 24, 2009

nakaab

नकाब

तुम्हें  पाने के लिए
मैंने नकाब उतार दी
और
पलक झपकते ही
तुमने उसे ओढ़ लिया

Wednesday, October 21, 2009

santulan

संतुलन 

ससुराल की दहलीज पर
कल जहाँ मेरे पिता ने कदम रखा था
वहां आज तुम खड़े हो
वहीँ आ कर खडा हो जाय गा तुम्हारा दामाद
सोचती हूँ क्या फर्क पड़ता है
पीढीयों के बदल जाने से

पिता की ऐंठन  जली रस्सी सी पड़ी है
तुम्हारे सामने
और तुम
आत्म विश्वास  के पिरामिड से
सीधे तने खड़े हो
मेरे सामने

विरासत में पाए इन गुणों को और अधिक मांज कर
जब खडा हो जाए गा
तुम्हरा दामाद हमारे सामने
तब
संतुलन का व्यर्थ प्रयास करती
तराजू के कांटे  सी
झुकती रहूँगी  मैं
कभी इधर कभी उधर

Tuesday, October 20, 2009

Beta

बेटा 

कोख का सुख
लो़क का सुख
परलोक का संभावित सुख
सभी कुछ पाया
जब बेटा जना मैंने

आशीषों की वर्षा से भीग उठी मैं
बेटा पा जी उठी मैं

बढता रहा समय
बदलते गए कलेंडर
और
आज जब बाप का जूता पहना है उसने
खुश होने का जगह
सहम गयी हूँ मैं उसका बदलाव देख कर

किस ने छीन ली है मुझसे उसकी  छुअन
क्या समय ने ?
ए़क सवाल पूछती हूँ आप से
बेटा बड़ा हो कर आदमी क्यों बन जाता है ?

Saturday, October 17, 2009

 कविता                                                                                                                                                               कविता एक लड़की है
जो पहली नज़र में भाती है
धीरे धीरे मन पर
छा जाती है