Wednesday, October 21, 2009

santulan

संतुलन 

ससुराल की दहलीज पर
कल जहाँ मेरे पिता ने कदम रखा था
वहां आज तुम खड़े हो
वहीँ आ कर खडा हो जाय गा तुम्हारा दामाद
सोचती हूँ क्या फर्क पड़ता है
पीढीयों के बदल जाने से

पिता की ऐंठन  जली रस्सी सी पड़ी है
तुम्हारे सामने
और तुम
आत्म विश्वास  के पिरामिड से
सीधे तने खड़े हो
मेरे सामने

विरासत में पाए इन गुणों को और अधिक मांज कर
जब खडा हो जाए गा
तुम्हरा दामाद हमारे सामने
तब
संतुलन का व्यर्थ प्रयास करती
तराजू के कांटे  सी
झुकती रहूँगी  मैं
कभी इधर कभी उधर

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