Thursday, November 05, 2009

Tukda Tukda vakt

आज मेरा जन्मदिन है
लोग दे रहे हैं बधाइयां और उपहार
मुझे छोड़ सभी खुश हैं

इस बार मन कुछ उदास है
गणित की उलटी गिनती गिनता
कहीं बहुत पीछे चला गया है
और वक्त ,जैसे लम्बी चादर हो गया है

कई रंगों की चादर
सफेद ,चटकीली और स्याह
सफेद टुकडा
सभी रंगों में रंगने को तयार
भोला बचपन
मस्त ,खिलखिलाता ,कभी रोता ,झुंझलाता

किस सन और तारीख को छूटा बचपन
नहीं पता
न ही समझाया किसी ने और न बताया
बस बदल गया रंग कपडे का
अब वो सफेद नहीं लाल हो गया है
चटक रंग बहुत भाया
जवानी ने पूरी की पूरी चादर जैसे
बंद कर ली हो मुठी में
कसी बंद मुठी से
कब धीरे  धीरे सरकती रही चादर
याद नहीं आता

आज देखती हूँ
बहुत कम बचा है कपडा
वक्त उसकी भी
कई - कई कतरने काट
उसे और छोटा करने में लगा है

क्यों हो रहा है टुकडा टुकडा वक्त
सारा का सारा गणित झुठलाता
गुणात्मक गति से सिमट रहा है
मानो कैलंडर उसे
छोटा करने में
जी - जान से लगा है

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